इंसान और परिंदा, एक कहानी एक सीख़
संवाददाता : सय्यद तंज़ीम अली इंसान और परिंदा, मैं ये जो लिखने जा रहा हूँ, ये एक समाचार भी है और कहानी भी समाचार उनलोगो के लिए जो लोग इंसान हो कर इंसान का धर्म भूल बैठे हैं और कहानी उनलोगो के लिए जो इस से कुछ सीख लें सकें. मैं जानता हूं आज हर व्यक्ती जवान हो या बूढ़ा, औरत हो या मर्द या चाहे बच्चा हो एक कठीन परस्थिती से गुजर रहे हैं. एक ऐसी महामारी जिसे कोई समझ नहीं पा रहा है के क्या सही है क्या गलत, लोगों का काम धंदा ठप हो गया है, बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है, हॉस्पिटल में ठीक से इलाज नहीं हो पा रहा है सारी बीमारियां जैसे टी.बी, कैंसर, एड्स, मलेरिया, टायफायड, जॉइनडिस ये सब गयाब सी हो गई हैं जो है तो बस कोरोना इस का हर जगा आतंक माचा हुआ है. कोरोना महामारी के चलते आज एक इंसान दसरे इंसान से मिलने से परहेज करने लग गया है, यँहा तक के जिस बाप ने अपनी सारी जिंदगी अपने परिवार पे निछावर कर दी जब उसका देहांत हो जाता है तो उसके क्रियाकर्म तक के लिए कोई नहीं जाता. साथ जाता है तो बस उसके अच्छे करम, इस लिए जब तक आपकी जिंदगी है बस अच्छे कर्म करते रहिये क्योंकी आखरी वक्त में वही आपका साथी है